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________________ 412 विक्रम चरित्र जाकर बोली, “मेरे घर एक देवकुमार के समान सुन्दर और रईस आदमी आया है, वह तेरी सुन्दरता पर मोहित हैं. हे सुन्दरी ! तेरा पति बहुत दिनों से परदेश में है, तुम अकेली रहा करती हो, चलो मन बहलाने के लिए मेर घर में विराजमान सुन्दर पुरुष से जरा बातें तो करो ! या तुम कहो तो उसे यहाँ ले आऊँ-वह पुरुष बहुत रूपवान व धनवान है. मिलो तो ठीक रहे ?" - वृद्धा कि बातें सुनकर सुरुपाने कहा, " मैने कभी परपुरुष का नाम तक नहीं सुना. वह भले ही कितना ही सुन्दर क्यों न हों, मुझे उससे मिलने की क्या आवश्यकता ?" . द्रव्य के लोभ में फंस कर वह कुटिल वृद्धा फिर भी बार बार सुरुपा के पास में आकर मूलदेव के समाचार और पत्र वगेरे लाकर दिया करती है. और भलाने वाली बातें बार . बार किया करती है, तब सुरुपाने सोचा, " उस पापी और कामी पुरुष को यहाँ बुलाकर क्यों न मजा चखाया जाय ? अर्थात् जिससे वह किसी को शीलभ्रष्ट करने की बात ही जीवनभर कभी न करें?" ऐसा मन में निश्चय कर सुरुषाने उस कुट्टीनी वृद्धा को चार दिनों का बायदा कर के कहा, " उस सुन्दर रईस पुरुष को चार दिन बाद लाना.” वह वृद्धा अपन घर जा मूलदेव को सुरुपा के समाचार कह सुनाये. सुरुपाने अपने घर में गुप्त रूपसे एक गहरा खड्डा खदवाया, और उस पर जीर्ण रस्सीवाली चारपाई-खोटया P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
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