________________ 410 विक्रम चरित्र अपने पूज्य माता पिता को साक्षी रख कर मैं प्रतिज्ञापूर्वक आप के गले में यह वरमाला डालती हूँ. यह माला कभी भी शुष्क हो जाये तो आप समझ लेना कि, मेरे शोल में कुछ मलिनता आई हैं. मेरे शील के प्रभाव से यह माला सदा ताजी ही रहेगी.' इस प्रकार कि जब उसने प्रतिज्ञा कि तो मैंने उस से विधिपूर्वक विवाह कर उस को अपने घर ले आया. अब मेरे विवाह के 12 वर्ष हो गये किन्तु हे राजन् ! अभी तक मेरी यह माला कुमलाई नहीं हैं, और मेरे गले में ही पूर्ववत् शोभायमान है." यह बात सुन कर महाराजा विक्रमादित्य बहुत आश्चर्य में पड़ गये और कहने लगे, “स्त्रियों के चरित्र को कभी कोई नहीं जान सका-और न जान सकेगा, शास्त्र में भी कहा है कि 'घोड़ो की चाल, वैशाख मासकी मेघ गर्जना, स्त्रियों के चरित्र, भावि कर्म रेखा, वर्षा नहीं होना अथवा अति वृष्टि होना इस को देवताओं भी नहीं जानते फिर मनुष्य की तो गणना ही क्या ? अपार समुद्र को पार किया जा सकता है, किन्तु स्वभाव से हि महा कुटिल स्वभाववाली स्त्रीयों का पता पाना अत्यन्त कठिन हैं.”x X अश्वप्लुत माधवगजित च स्त्रीणां चरित्र भवितव्यता च; अवर्षण चाप्यतिवर्षण च देवा न जानन्ति कुतो मनुष्याः // स. 10/439 // P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust