________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित 409 उसका उत्तर नहीं देने से दो चार लातें मारी, तब भी वह नहीं बोली तो उसने टटोल कर देखा. सावधानी से देखने पर उसने विचार किया कि, मर्म स्थल पर मेरी चोट लगने से इस की मृत्यु हुई है, आज मुझे स्वीहत्या लगी, उसका पश्चाताप करने लगा और घबराने लगा, पर घबराने से कोई काम न चलता देख बाद में उसने उसको उठाया और एक खड्डा में फेंक कर उपर धुल डाल-गाड़ दिया. इतना कर वह जार अपने स्थान पर चला गया. हे राजन् ! मैं अपनी स्त्री के इस हाल को देख कर बहुत घबराया ! मेरा सारा शरीर कांपने लगा. नारी चरित्र पर आश्चर्यपूर्वक दुःखानुभव करता हुआ वहाँ से धीरे धीरे मैं अपने श्वसुर घर आकर चुपचाप सो गया. जब सुबह हुई तब उसके माता पिता अपनी पुत्री मक्मिणी को नहीं देख कर दुःखी हुए. मैंने उनको रातका सारा वृत्तान्त सुना दिया, जो कि प्रथम से लेकर गत रात्रि में घटित हुआ था, वह सब सुनाकर बाद मैं श्वसुर की अनुमति ले वहाँ से जब मैं चलने को तैयार हुआ तब मेरे श्वसुर की दूसरी कन्या सुरु पा हाथ मे पुष्पमाला लेकर आई, और कहते लगी 'अब आप मुझे अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कीजिये.' मैंने कहा, 'शायद तुम भी अपनी बड़ी बहन के समान ही निकला तो? मुझे ऐसी पत्नी से कोई प्रयोजन नहीं है ?' उस कन्याने विनयपूर्वक कहा, 'हे जीजाजी ! P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust