________________ 408 .विक्रम चरित्र 3 रात को क्यों नहीं आई ?' और यह कहते कहते ही उसने उसको एक जोर का तमाचा मारा. तमाचे की मारसे वह स्त्री गिर पडी, उस स्त्रीने उठ कर कहा, 'क्षमा करें! द्वारपाल ने दर। वाजा नहीं खोला. इस लिए नहीं आ सकी थी.' , जहाँ वह स्त्री गिरी वहाँ उसका एक तावीज गिर पड़ा था. और जब मैं उस तावीज को लेने के लिए झुका ठीक. उसी समय तुमने मुझे जगा दिया, और मेरी आँखे खुल गई.' इस पर भी जब वह स्तब्ध रही तो मैने गुस्से में आख लाल कर कहा, 'हे रुक्मिणी, मुझे स्वप्नावस्था से जगाकर तुमने ठीक नहीं किया-यह खानदानी लड़की के लक्षण नहीं हैं.' . अपनी पाप कहानी सुन कर रुक्मिणी का हृदय फट गया और वह उसी क्षण मर गई. यह देख में तो प्रथम घबराह गया. और सोचने लगा, 'क्या करूं?' आखिर में मैंने संसार को जानने के लिए उस रुक्मिणी के उस मुर्दा को उठा के सराफा बाजार में जहाँ उस का जार से मिलन होता था, वहाँ ले जा कर रख दिया, और आड़ में छिपकर. एक जगह चुपचाप खड़ा रह गया. थोडी देर बाद वही उसका-लम्पट जार पुरुष वहाँ आया; और नीचे पड़ी हुई रुक्मिणी को देख उसने समझा, 'शायद रुक्मिणी रुठ कर सो गई होगी.' इस कारण गुस्से में आ उसने कहा, 'हे पापीनी ! आज बहुत देर से क्यों आई ?' P.P.AC.Gunratnasuri M.S.. Jun Gun Aaradhak Trust