________________ 402 विक्रम चरित्र दिया. सर्वस्व अर्पण करनेवाले मुझ कामी का लक्ष्मी के चले जाने पर उसे कामलता वेश्याने मुझ को अपने घरसे अपमानीत कर निकाल दिया. - शास्त्र का कहना ठीक ही है 'मेघों-बादल की छाया, घास की अग्नि, दूष्टों की प्रीति, -स्थल मिट्टी पर पड़ा हुआ जल, वेश्या का प्रेम, और स्वार्थी मित्र, ये छः पानी के बुलबुला-बुबुद् के समान क्षणिक होते है.' इस प्रकार के विचार करता करता जब मैं घर आया, तब घर की भग्नावस्था देख कर मन ही मन बहुत दुःखी हुआ, अपनी स्त्री को लाने मैं जब कौशाम्बीपुर में उस के मायके गया, तब वहां इस दरिद्रावस्था के कारण मुझे किसीने नहीं पहचाना, और श्वसुर के घरमें प्रवेश करने न मिला. तब मैंने भिक्षुका वेष लेकर अपनी स्त्री का चरित्र और व्यवहार को जानने के लिये श्वसुर के घर के पास में रह कर वह रात्रि व्यतीत करने का विचार किया. आश्चर्य की बात तो यह है कि मुझे अपनी पत्नी के हाथ से भिक्षा ग्रहण करनी पडी. 'किन्तु उसने मुझे नहीं पहचाना. - मेरे सद्भाग्य से श्वसुर के घर की पास में ही एकान्त -स्थान भी मिल गया. वहां चोतरे पर जागृत अवस्था में ही पड़ा रहा, ठीक मध्यरात्रि में मेरी स्त्री रुक्मिणी लड्डु-मो“दक से भरा थाल लेकर दरवाजा पर आई और द्वारपाल से .. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust