________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित गया. कुंछ दिनों के बाद मेरे वियोग के दुःख से दुःखी हो मेरे माता और पिता दोनों का अवसान हुआ, तो भी मैंमूढ घर नहीं गया. मेरे पिता के गले का तावीज मेरी पत्नीने ले लीया और उस को अपने हाथ में बांधकर रखने लगी.. . ___उस वेश्या के द्वारा मेरा धन क्रमशः खेच लिया गया, और तब ही मेरी दरिद्र-अवस्थाका प्रारंभ हुआ, मेरे मातापिता के अवसान के पश्चात् जन और धन दोनों के अभाव में दुःखी हो, मेरे जैसे 'अधम पति को छोड़ खाली घरसे मात्र वह सोने का तावीज लेकर रुक्मिणी कौशाम्बीपुरी में अपने पिता के घर चली गयी. क्योंकि"दुःखि या हो सुखि या कैसा भी-घर माता पिता प्यारा है। संकटमें नारी लोगों का निज जननी जनक सहारा है." जैसे कि-' फलों के गिर.जाने पर वृक्ष को पक्षिगण छोड़ चले जाते हैं, सुखे हुए सरोवर को सारस पक्षी भी छोड़ देते हैं; बासी-कुम्हलायें हुए पुष्पों को भोरे-भवरे नहीं चाहते त्यज देते है, वन के जल जाने पर मृगादि-हरिण वगेरे उस वन को छोड़ देते है, कामी पुरुषों के गरीब हो जाने पर वेश्या उन्हे छोड़ देती हैं. राज्यभ्रष्ट राजासे सेवक लोग चले जाते है, इन उपर के उदाहरणों से ये ही समझना चाहिए कि बिना स्वार्थ के कोई किसीका नहीं चाहता या मानता. अर्थात् सब की पीछे स्वार्थ लगा ही रहता है, जगत में कोई भी निस्वार्थी . नहीं होता हैं. P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak. Crust