________________ 400 विक्रम चरित्र वह विदेशों में व्यापार करने के लिये कई अन्य व्यापारी साथियों के साथ माल लेकर जानेआने लगा; वह धनकेली बड़ा धनवान था और सबसे अधिक उसका ही माल आता-- जाता था, अतः उसके वाहनों के अधिक चलने से गगन में धूल बहुत उड़ती थी, उस के साथीयोंने उस धूली का गगन तक उड़ान होने के कारण उसको गगनधूली के नाम से संबोधित करने लगे. हे राजन् ! मैं वही गगनधूली हुँ." गगनधूली आगे कहने लगा, "हे राजन् ! माता पिता की इच्छा से कौशाम्बापुरी के चन्द्र नाम के श्रेष्ठि की पुत्री से जिसका नाम रुक्मिणी था, उससे अति विशेष समारोह के साथ मेरा विवाह हुआ, और नववधू के साथ मेरा समय आनंद से व्यतीत होने लगा. इस प्रकार कुछ समय मैं अपनी नववधू के स्नेह में ही रत रहा, पर मनोविज्ञान का साधारण सा नियम है कि सब समय एक सा रूप अच्छा नहीं। लगता, कुछ नवीनता की चाहना लगी रहती है, इस नियम के अपवादमें से मैं भी न बच सका, कुछ समय पश्चात् मेरा . कामलता नामक वेश्या से परिचय हो गया, उससे विमोहित होकर मैं उसके कथित प्रेम में विश्वास करने लगा, और आनंद विलास में रत हो, अपना जीवन व्यतीत करने लगा.... - उस देश्या में मोहित होकर सारा दिन मैं उसी के घर में रहता था, अपने घर से बहुतसा धन मंगा मंगा कर व्यय किया करता था, मेरे माता पिता वृद्ध हुए थे, मुझे बहुत बार बुलाया करते थे किन्तु मैं एक बार भी घर नहीं P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust