________________ विक्रम चरित्र हूँ जो इस प्रकार चमत्कार बताऊँ. महाराजा-वाह ! क्या तुम इस आसन को याही खाली रखोगी ? अरे अपने प्रेमी गगनधूली को क्यों नहीं बुलाती ? राजा के यह शब्द सुनते ही वह स्तब्धसी हो गयी, प्रथम तो वह योगी और योगिनी की मायाजाल को देख आश्चर्य में डूबी हुई थी; मन ही मन सोचने लगी 'क्या करूँ !' आखिर में उसने अधिक समय न लगा कर छिपाया हुआ उस गगनधूली को वहाँ बुला लीया, गगनधूली अति स्वरूपवान था, उसको पांचवे आसन पर बैठाया, सभीने बड़े प्रेम से भोजन किया और बाद में महाराजाने कहा, “हे योगीराज! मैंने सौभाग्यसुंदरी को सखी से बातें करते * हुए सुन, उसकी परीक्षा के लिये यह सब रचना की हैं." कहते हुवे महाराजाने आदि से अंत तक का सब वृत्तान्त संक्षिप्त रूप से कह सुनाया. _____ महाराजाने सभी को अपराध की क्षमा प्रदान कर जीवितदान देकर पुनः योगा से कहा, “जब आप जैसे योगी भी स्त्रीचरित्र में फंस जाते हैं, तो इस सौभाग्यसुंदरी और मुझ जैसे की तो गणना ही कहा हैं ?" महाराजाने गगनधूली से पूछा, "हे श्रेष्ठीवर! आप मुझे बताईये कि आप इस नगरी में कबसे आये हैं ?" ___ गगनधूली-मुझे इस नगरी में आये छै मास हो गये हैं.” P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust