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________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित 395 महाराजने उस तरफ चल दिया, वहाँ जाकर भीत्ती के आड में खड़े होकर चुपचाप देखने लगे; तो वहाँ कोई आश्चर्यजनक बात दिखाई दी. एक जटाधारी योगीने अपनी जटामें से एक नवजवान कन्या को प्रगट की, और उस कन्या के साथ आनंद-विलास कर योगी सो गया. योगी के सो जाने पर उस कन्याने अपने लंबे लंबे बाल में से एक खुबसुरत मनुष्य को प्रगट किया, और उस मनुष्य के साथ उस कन्याने भी आनंद-विलास कर के मनुष्य को छिपा दिया. . यह सब आश्चर्यकारी वृत्तान्त देख महाराजा विक्रम मन ही मन चकित से हो गये. और सोचने लगे, 'नारी चरित्र की लीला तो अपार है, इस का पार कोई नहीं पा सकता है.' इस प्रकार वे विचार करते करते अपने राजमहल में जाकर सो गये. एक दिन महाराजा अचानक सौभाग्यसुंदरी के महल में . ऐसे समय पर पहूँचे, जब कि गगनधूली सौभाग्यसुदरी के साथ आनंद मना रहा था. महाराजा का आगमन जानकर शीघ्र ही सौभाग्यसुंदरीने उसे छिपा दिया, जब महाराजा महल में पहूँचे तब सौभाग्यसुंदरीने उन्हों का सुंदर स्वागत किया. इस महल में जाते समय महाराजाने अपने दृतों को संकेत बता कर उस खंडहरवाले योगी को इस महल में बुला लिया और सौभाग्यसुंदरी से आदेश किया कि आज तुम P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak'Trust
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
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