________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय सयोजित अपनी चतुराई से मेरे पास आकर मुझ से प्रीति करो. अन्यथा मैं तुम्हारे वियोग में अपने प्राण को त्याग दूंगी." यह पत्र पढ़ कर वह व्यापारी चकित हो गया, और तुरंत ही ऊपर देखा तो झरुखे में सौभाग्यसुदरी पर उसकी दृष्टि पड़ी, दोनों की चारों आंखे से मिलना हुआ और सौभाग्यसुदरी का रूप देख वह भी उस पर आसक्त हो गया. अब वह गगनधूली उस सौभाग्यसुदरी के पास पहूँचने का उपाय सोचने लगा. अपने मुकाम पर आकर उसने अपने . मनकी बात मित्र से कही, मित्रने उस को महल पर चढ़ने का उपाय बता दिया.. मित्र के कथनानुसार वह उसी दिन बाजार से एक गोहगोधा और रेशम की डोरी खरीद लाया. उसने सारी तैयारी कर ली, और मनमें सोचने लगा कि, अब मेरी सब कामनाये पुरी हो जायेगी, थोड़ा सा दिन बाकी था, वह कव पूर्ण होवे और कब रात हो जाय, ताकि शीघ्र सौभाग्यसुंदरी से * . मेरा मिलन हो जाय, एक-एक क्षण भी युग की तरह वीत रही थी, रात हुई. सर्वत्र अंधेरा फैल गया, एक पहोर रात चीतने पर गगनधूली अपने स्थान से एक स्थभिया महल की ओर चला; पहरेदारों से अपने को बचाता हुआ, महल के समीप आया, गोह की कमर में रेशमी डोरी बांध उसे महल की दीवार पर फेंका. गोह दीवाल से चिपट गयी. गगनधूली सेठ उस डोरी के सहारे उपर चढ़ महल पर पहूँच Jun Gurr Aaradhak Trust P.P. Ac. Gunratnasuri M.S.