________________ 392 विक्रम चरित्र व्यापार के निमित्त शहरमें चक्कर लगाया करता था, और प्रायः वह एक स्थंभवाले महल के पास होकर ही निकलता था, इस प्रकार प्रतिदिन उस को पालखी में बैठ कर निकलते हुए देख सौभाग्यसुंदरीने उसका रूप, सुंदरता और चतुराई से आकर्षित होकर एक दिन अवसर पाकर एक पत्र में कुछ. लिख कर पानके बीड़े में रख कर उसकी पालखी में फेंका-डाल दिया. उस पत्र का आशय इस प्रकार था. "हे नर श्रेष्ट ! मैं आपकी सुन्दरता पर अत्यन्त मोहित हुँ, मेरी प्रीति आपके प्रति जागृत हो उठी है, अतः तुम ":. -. ":A L : vvv - - w -i .... R LATERY स Vvvvv Hymnt भारपाय Kinam 4TAALATHLETICKNAK GIRamype AURAVANAVANA SANTOTHAINDA )// सौभाग्यसुदरी और गगनधली की परस्पर चारों आंखो का मिलना। / चित्र नं. 12 P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust