________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित 391 महाराजाने अपने पूर्व निश्चय के अनुसार उस की लीला देखने के हेतु, नगरी से कुछ दूरी पर सौभाग्यसुदरी के लिये एक स्थभवाले महल में रहने की सब व्यवस्था कर दी. साथ ही उसके चरित्र को देखने के लिये उस महल पर गुप्त पहरा लगा दिया, समय बीतने लगा, अवसर देख महाराजाने एक दिन सौभाग्यसुंदरी से आनंद-विनोद करते करते, पूर्व बात का स्मरण कराते हुए कहा, " हे सौभाग्यसुंदरी! अब तुम अपनी प्रतिज्ञा को पूरी करो." यह सुन वह विस्मयसी होकर बोलो, " पतिदेव ! आप कौनसी प्रतिज्ञा के लिये कह रहे हो ?" महाराजाने कहा, " अपनी शादी के पहले एक रात्रि में जो कि तुमने अपनी सखी से कहा था, 'मैं अपने पति को धोखा देकर मनपसद-परपुरुष के साथ प्रेम करूंगी.” ये सब बातों का स्मरण होते ही सौभाग्यसुंदरी कुछ लजित हुई; किन्तु उसने मनमें निश्चय किया, " यह प्रतिज्ञा पूर्ण कर के दिखाऊँगी.” उसने परस्पर चलती हुई बात में उपरोक्त बात टाल दी. समय बीतने लगा, महाराज भी राज्य के अन्यान्य कार्यो में रहते थे, सौभाग्यसुदरी अपनी प्रतिज्ञा पूर्ण करने की फिकर में थी; और महाराजा भी उसकी कामलीला देखने चाहते थे, इस लिए उसकी आर पूर्ण संभाल रखते थे. ओक बार अवंती नगरी में एक व्यापारी आया, जिस को लोग गगनधूली के नाम से बुलाते थे; वह प्रतिदिन अपने P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust