________________ 390 विक्रम चरित्र आदि से स्थान-गली का संकेत बता दिया ताकि मकान का पता लगाने में सुविधा रहे. महाराजा के आज्ञानुसार दूतगण-सेवक लोगने बताये गये संकेत के आधार पर जाकर शोघ ही सौभाग्यसुदरी के पिताजी का मकान खोज लिया वहाँ पहूँच कर उन्होंने उस के पिताको महाराजा का आदेश सुना कर राजाजी के पास चलने के लिये कहा. यह सुन सौभाग्यसुदरी का पिता प्रथम तो व्याकुल सा हुआ, दूतों के आग्रह से उन्हों के साथ ही रवाना होकर महाराज की सेवामें उपस्थित हुआ. वहाँ आकर उन्होंने महाराजा से नमस्कारपूर्वक निवेदन किया, “हे राजन् ! ईस सेवक के लिये क्या आज्ञा है ? फरमाईये मैं हाजिर हुँ.”. . महाराजाने कहा, " सेठजी! क्या आप की पुत्री का नाम सौभाग्यसुंदरी है ?" “जी हा." सेठजीने कहा. बाद में महाराजाने सेठजी से कई प्रकार कि बातें कर के आखिर में महाराजाने बातों बातों में सेठजी से कहा, "आप की पुत्री के साथ विवाह करने की मेरी इच्छा है." पहले तो सेठजीने आना-कानी की पर महाराजा के विशेष आग्रह को वह न टाल सका और अन्त में महाराजा की इच्छा स्वीकृति कर धमधामसे शादी की. उस सेठजा पर प्रसन्न होकर महाराजाने उसे बहुतसा धन दिया. P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust