________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित 389 सौभाग्यसुदरी के प्रति उस की सखी बोली, " तुम भी तो बता कि, तु ससुराल जा कर क्या करोगी ?" सौभाग्यसुंदरी-हे सखि ! जब मेरी शादी पिताजी कर देंगे तब मैं अपने सुसराल जा कर अपने पति को धोखा दे कर मनपसंद पुरुषके साथ प्रेम करूँगी और मौजविलास से समययापन करूँगी. दोनों कन्या की इस प्रकार बातें सुन कर महाराजा विक्रमादित्य बड़ी दुविधा-असमंजस में पड़ गये. मन ही मन स्त्रीसमाज की प्रशंसा और कपटलीला की बातें सोचने लगे; कारण कि उनके सामने दोनों ही उदाहरण प्रस्तुत थे, चलते चलते काफी विचार विमर्श के बाद महाराजाने निश्चय किया कि, किसी भी प्रकार सौभाग्यसुदरी को अपनी बनाना चाहिए और उस की स्त्रीलीला को अवश्य देखना चाहिए. अतः उन्होंने अपनी इच्छा को प्रातः ही कार्य रूप में परिणित करने का निश्चय किया, बाद में महाराजा अपने महल में आकर सो गये. प्रातःकाल होते ही मंगल शब्दों से उठकर नित्य कार्य और देव दर्शन-पूजा पाठ कर महाराजाने अपने सेवकों को बुला कर रात की सारी बाते उन्हे कह सुनाई और आदेश दिया, “तुम सौभाग्यसुंदरी के पिता को मेरे पास बुला लाओ." साथ ही महाराजने उन्हे रात्रि के अपने अनुमान : Jun Gun Aaradhak Trust P.P. Ac. Gunratnasuri M.S.