________________ ... बावनवाँ-प्रकरण एकदण्डिया राजमहल " अन्तर अंगुली चारका, साच झूठ में होय; सब मानत देखी करी, सुनी न मानत कोय." एक दिन की बात है कि महाराजा विक्रमादित्य प्रजा के सुख-दुःख की जांच करने के उद्देश्य से गुप्त वेश में अपनी नगरी में परिभ्रमण कर रहे थे. अंधकारमय रात्रि थी, सारी नगरी को प्रजा निद्रा की गोद में सोने की तैयारी कर रही थी. ऐसे समय में महाराजा अकेले गली गली में घूम रहे थे. उस समय घरके चोतरे पर दो कन्याएँ आपस में वार्तालाप कर रही थी, महाराजा मकान की ओट में खड़े रह कर चुपचाप, उन दोनों की बातें सुनने लगे, उन दोनों कन्या में से सौभाग्यसुंदरी नाम की कन्या बहुत चतुराई से बात करती थी, वह अपनी सखी से पूछने लगी, "हे सखि ! तेरे पिताजी तेरी शादी करेगें, और जब तु ससुराल जायगी तब वहाँ कैसे रहेगी ?" उसके उत्तर में कहा, "मैं जब ससुराल जाऊँगी वहाँ अपनी सासससुर और अपने पतिदेव आदि सभी का विनयपूर्वक सदा सेवा करुंगी, यही स्त्रीका आचार है, और क्या ?" यह सुन कर सौभाग्यसुदरी बोली, “वाह ! ठीक है, स्त्री गुलाम की तरह घर में सभी की सेवा चाकरी किया करे! और क्या करे ?" P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust