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________________ 386 'विक्रम चरित्र दीन-दुःखी को दान में ही किया. ईस प्रकार उस परोपकारी कार्यो में दिये गये रत्नों में से गिरा हुआ, यह एक अपूर्व रत्न है, वही रत्न आपके हाथ में आया हैं; हे राजन् ! ईस अलौकिक-श्रेष्ट रत्न का मूल्य क्या बताऊँ ? ईस अपूर्व रत्न का मूल्य कोई नहि कह सकता है." __ महाराजा विक्रमने बलि राजा का उत्तर सुन कर उनसे पुनः निवेदन किया, “हे राजन् ! यह तो मैं भी मानता हूँ कि वास्तव में यह रत्न अमूल्य है पर आप वर्तमान समय' को देख ईस का कुछ न कुछ तो मूल्य बता दीजिये. ताकि मुझे इस से कुछ शांति मिले." . महाराजा विक्रम की मूल्य जानने की इस प्रकार की प्रबल इच्छा को देख कर बलि राजाने उस रत्न का मूल्य तीस करोड सुवर्ण-मुद्रा सोना महोर बताया यह सुन * महाराजा विक्रम भी अत्यंत चकित हुए पर अपना . मनोरथ सिद्ध जान कर प्रसन्नतापूर्वक बलि से विदा लेकर वैताल सहित अपनी नगरी में पधारे. अवती में आ कर महाराजाने उस वणिक को बुलाया और अपनी राजसभा में 'उस वणिक से उस रत्न का मूल्य बता कर वणिक् को तीस.. : करोड सोना महोर के साथ साथ दस गाँव और पांच मनोहर घोडे इनाम देकर आदरपूर्वक विदा किया. अब महाराजा विक्रम भी अपने राज्य को पूर्ववत् चलाने लगे. P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
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