________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित 385 विक्रमादित्य को आते हुए देख, बलि राजाने कुछ सामने आकर उन का बड़ा आदर-सत्कार किया. आसन पर बैठा कर, कुशल समाचार की पृच्छा करने के पश्चात् आने का कारण पूछा. उत्तर में विक्रमादित्यने कहा, “हे राजन् ! मैं आपके पास एक रत्न की परीक्षा कराने के लिये आया हूँ.” यह कह कर अपने पास का वह रत्न बलि राजा के सामने रख दिया. राजा विक्रम से लाया हुआ उस रत्न को हाथ में लेकर देखा तब बलि राजा बहुत विस्मित हुआ और कहने लगे, “ईसः .. अपूर्व रत्न का मूल्य कोई नहीं कह सकता." . विक्रम-हे राजन् ! यह अमूल्य रत्न कहाँ से आया ? ____बलि राजा-पूर्व काल में-आज से 84 हजार वर्ष के पहले अयोध्या नगरी में सत्यवादी, धर्मात्मा, धर्म-कर्म कुशल आदि अनेक गुणों से युक्त युधिष्ठिर नामका राजा. राज्य करते थे; धर्म कृत्य में सदा तत्पर युधिष्ठिर महाराजाः न्याय नीतिपूर्वक राज्य चलाते थे और प्रजा का पुत्रवत् पालनः करते थे. एक दिन महाराजा के सत्यवादिता आदि उत्तमः गुणों से वरुणदेव प्रसन्न होकर उन्हे-युधिष्ठिर को बहु मूल्य-. वान अपूर्व बहुत से कोटि अयुत असंख्य रत्न दिये और युधिष्ठिर . महाराज की प्रशंसा कर वरुणदेव अपने स्थान. चले गये. / धर्मात्मा युधिष्ठिर ने राजा वरुणदेव से दिये गये उन सब अपूर्व रत्नों का उपयोग अपनी प्यारी प्रजा के कार्यो में तथाः .. P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust