________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय सयोजित 383 ' तब विक्रमने कहा, "ना, मैं महाराजा राम का भक्त सेवक हूँ.” द्वारपालने पुनः जाकर बलि राजा से कहा, "वह महाराजा राम का भक्त सेवक हुँ, ऐसा कहता है." तब बलिराजा ने उस द्वारपाल से कहा, " तुम जाकर पूछ कर आओ कि क्या तुम हनुमान हो ?" द्वारपालने फिर दरवाजे पर आकर उस को पूछा, “क्या आप हनुमान है ?" तब विक्रमने कहा, “ना, मैं कुमार हुँ; बलि राजा के पास कुछ कार्य के लिये आया हूँ.” यह उत्तर सुन पुनः बलि राजा के पास जाकर उसने निवेदन किया, "वह आनेवाला अपने आप को कुमार बताता है.” तब बलि राजा बोला, “क्या पार्वतीपुत्र-पॅड़मुख कुमार है ?" द्वारपाल : वापिस लौट कर आया और पूछा, “क्या पार्वतीपुत्र-छे मुखवाले कुमार हो ?" उत्तर में विक्रमने कहा, "मैं शंकरसुत कार्तिकेय नहीं हुँ ! मैं तो वर्तमान काल में पृथ्वी का रक्षण करनेवाला कोटवाल हुँ.”. यह सुन कृष्ण-द्वारपालने आकर बलि राजा से निवेदन किया, " वह तो अपने को कहता है, म वर्तमान में पृथ्वी का रक्षक-तलार-कोटवाल हूँ.” यह सुन कर बलिराजा विस्मय होते हुए विचारने लगे, 'वह पृथ्वीका राजा कहीं विक्रमादित्य तो नहीं हैं. ऐसा सोच कर अपने कृष्णद्वारपाल से कहा, "यह काव्य उन्हें सुनाकर जो उत्तर दे वह P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust