________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित 381 महाराजाने पुनः पूछा, “आप लोग चूप क्यों है ? आप मणि रत्न का मूल्य शीघ्र बतावें." महाराजा के ईस प्रश्न के उत्तर में एक चतुर जौहरीने उत्तर दिया, “हे राजन् ! हम लोग तो ईस रत्न का मूल्य नहीं बता सकते है, अगर आपको ईस रत्न का मूल्य जानना ही है, तो आप पाताल के राजा बलि के यहाँ पधारें, क्यों कि बलि राजा रत्नों के उत्तम परीक्षक हैं; वही आपको इस रत्न का यथार्थ मूल्य बता सकेगा दूसरों की ताकात नहीं. हमने तो आज तक न तो इस प्रकार का अपूर्व रत्न देखा है और न सुना ही है, फिर आप ही कहिये कि हम इस का मूल्य कैसे बता सके ?" इन लोगों से इस प्रकार का निराशाजनक उत्तर सुन कर महाराजाने उस रत्न की परीक्षा कराने का निश्चय किया, रत्न लाने वाले वणिक को कहा, "मैं इस रत्न की परीक्षा कराने पाताल में जाऊँगा, तुम अपने रत्न को दो दिन के लिये . मेरे पास ही रहने दो.” वणिकने वह रत्न महाराजा को सौंप दिया और अपने घर गया. वणिक से रत्न लेकर महाराजा विक्रमादित्य अग्निवैताल की सहायता से पाताल में पहूँचे, वहां जाकर वह राक्षसाधिराज बलि के महल में गये; राजमहल के द्वार पर कृष्ण नामक एक द्वारपाल खड़ा था, उस द्वारपालने महाराजा से P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust