________________ TGAO : ईक्कावनमाँ-प्रकरण रत्न प्राप्ति व उसका मूल्यः " किंमत घटे नहि वस्तु की, भाखे परीक्षक मूल; . 'जैसा जिसका पारखा, वैसा करे मणिका मूल." .. ... महाराजा विक्रमादित्य अपनी राजसभा में अपने अंतुल। बुद्धिमान, बलशाली और चतर सभासदों के साथ सभा की शोभा बढ़ा रहे है. कालीदास जैसे महान् कवि के साथ नौ रत्न .. अपनी बुद्धि से मालवपति महाराजा की कीर्ति दिगन्त में फैला रहे हैं. सामने सुन्दर बत्तीस पुतलियों वाले सिंहासन पर महाराजा विक्रम विराज रहे है. उसी समय एक वणिक् ने सभा में प्रवेश किया, और सारी सभा को दिखाते हुए महाराजा के सन्मुख एक रत्न प्रस्तुत किया.. यह रत्न बड़ा ही प्रकाशमान था, और देखने से अमूल्य सा प्रतीत होता था. उस रत्न को देख महाराजाने उस वणिक से प्रश्न किया, “हे वणिक ! तुम्हे यह रत्न कहाँ से मिला है ? ".. .. वणिक-महाराज! मुझे यह रत्न खेडते हुए खेतमें से मिला है... महाराजा--क्या तुम्हे ईस रत्न का मूल्य मालूम है ? वणिक-जी नहीं ! मुझे इस का मूल्य मालुम नहीं है. P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust