________________ 378 विक्रम चरित्र भ्रमण के लिये निकलने का तथा धनद् सेठ से उसका परिचय होने आदि का हाल पढ़ा ही है. महाराजा द्वारा कम अधिष्टात्री देवी-विधाता से मिलकर उस सेट के पुत्र के भाग्य-लेख का हाल मालूम कर उसकी मृत्यु का कारण जान कर ठीक उस की मृत्यु के समय विवाह कार्य में उपस्थित होकर अपने प्राणों का बलिदान देने तक की तैयारी प्रदर्शित कर संसार में परोपकार का एक अद्भुत उदाहरण उपस्थित करने आदि . . का रोमांचकारी हाल पढ़ ही लिया है. आशा है, आप लोग भी विक्रम महाराजा के चारत्र से परोपकार का पाठ लेगे. __अब आप आगामी प्रकरण में महाराजा का मणि का मूल्य कराना आदि रोचक कथा पढेगें. प्रथम तीर्थकर भगवान श्री आदिनाथ प्रथमावृत्ति अति अल्प संमयमें खतम हो जानेके कारण द्वितीयावृत्ति मुद्रित की गई हैं ! जिसमें परमात्मा श्री ऋषभदेव के समयमें हुए युगलिये कैसे थे, उस समय जनता व्यवहारसे अनभिज्ञ थी, उन लोकों को परमात्मा श्री ऋषभदेवने कौनसी 2 कलाएँ शिखाई, उनमें धर्मका प्रभाव और प्रचार किस तरह किया, उन के पूर्वभव भी अच्छी तरह बतलाये, उनके पुत्र परिवार भरत, बाहुबलि आदिका रोचनीय वर्णन और अक्षयतृतीया पर्व की उत्पत्ति किस कारणसे हुई, यह सब वृत्तान्त आपको अच्छी और सरल भाषामें बोधदायक सुहावने चित्रोंके साथ पढने के लिये प्रकाशित किया है / पृष्ठ 272, 40 मनोहर चित्र, मूल्य मात्र 2-8-0 प्राप्तिस्थान : जशवंतलाल गिरधरलाल शाह C/o जैन प्रकाशन मन्दिर, 309/4 डोशीवाडा की पोल, अमदावाद P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust