________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित 377 अपना प्राण त्याग दूंगा. ईस प्रकार महाराजा के निश्चय को देख विधाताने उस धनद् पुत्र को पुनः जीवित कर दिया, और क्षण में देवी अलोप हो गई. ईस प्रकार राजा विक्रमादित्य के प्रयत्न से धनद् कुमार को जीवित देख सभी लोग प्रसन्न हो गये. सच है, रणमें, वनमें शत्रुओं के वीचमें, जलमें, अग्निमें, पर्वत की चोटी पर, नीदमें हो या जागता हो, किसीभी विषम स्थानमें हो तो भी अपने प्रबल पुण्य प्रभाव उपरोक्त परिस्थितियों से रक्षा होती हैं. ईस प्रकार महाराजा विक्रमादित्य के अपूर्व साहस द्वारा पुनः जीवित कराये गये, पुत्र का धनद् सेठने पुनर्जन्म का बहुत आडम्बर से महोत्सव मनाया और लोगों को बहुतसा दान दिया. बड़ी धामधूम से पुत्र की शादी निर्विघ्न सानंदसंपन्न होने पर महाराजा विक्रम का बहुत बड़ा उपकार मान उन्हों को धन्यवाद देता हुआ महाराजा को तथा उनके परिवार आदि सेवक लोगों को वस्त्रालंकार से सन्मानित कर विदाई दी. __महाराजा अब वहाँ से प्रस्थान कर अपने लाव-लश्कर सहित अवंती की ओर चले, क्रमशः अवतीनगरी में पधारे और अपना राज्यकार्य संभाला-चलाने लगे. "जो पराये काम आता, धन्य है जगमें वही; द्रव्य ही को जोड़कर, कोई सुयश पाता नहीं." पाठकगण! आपने इस प्रकरण में महाराजा विक्रमादित्य का विदेश Jun Gun Aaradhak Trust P.P. Ac. Gunratnasuri M.S.