________________ 376 विक्रम चरित्र जो जो जीवने अपने शुभ या अशुभ कमें किये गये हो, उसे भोगे विना उस पुण्य-पाप से छूटकारा किसी भी दशा में नहीं होता है." कर्म की तो गति ही विचित्र है, ईस में दूसरी व्यक्ति क्या कर सकती है ? कर्म और काल का तो नियम अटल हैं. ईस के आगे किसी का कोई उपाय नहीं चलता, जैसे जिस ब्रह्मा को संसार रूपी पात्र बनाने में कुम्भार के समान नियंत्रित किया है, रुद्र को कपाल-खोपरी जैसी अपवित्र वस्तु हाथ में लेकर भिक्षा मांगने के लिये विवश किया हे, दशावतार रूप आवागमन से विष्णु को जिसने हमेशा संकट में डाल रखा है, सूर्य को भी आकाश में ही नित्य घूमने को नियत किया है, ऐसे कर्म को मेरा नमस्कार है." यह सब सुनकर राजा विक्रमादित्यने विधाता से कहा, "हे देवी! ईस धनद् के पुत्रने पूर्व जन्म में जो सिंह को मारा था, उस संबंधी पाप कर्म तो ईस के मरने से अब नष्ट हो गया हैं, कारण कि उसी पाप से यह अभी मरा है, अब तुम ईस को पुनः जीवितदान दे दो, अन्यथा म x ब्रह्मा येन कुलालवनियमितो ब्रह्माण्डभाण्डोदरे, रुद्रो येन कपालपाणिपुटके भिक्षाटन कारितः; विष्णुयेन दशावतारगहने क्षिप्तो महासकटे, . सूर्यो भ्राम्यति नित्यमेव गगने तस्मै नमः कर्मणे. // स. 10/306 // P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust . .