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________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित 371 सारी बाते बताई, तब अवंतीनिवासीयोंने निश्चय कर उत्तर दिया, “ये सभी लक्षण तो महाराजा विक्रमादित्य से ही मिलते है.” अतः उन्होने तो विक्रमादित्य के महल का रास्ता बता दिया. राजमहल के पास जाकर देखा तो सुसजित हाथी पर आरूढ हो कर स्वारी सामने आ रही थी, उसे देखते ही धनद् सेठने राजा को तथा राजाने भी धनद् सेठ को पहिचान लिया. हाथी पर से ही महाराजाने धनद् सेठ से पूछा, 'हे धनद् सेठ ! क्या आपने अपने पुत्र का विवाह कर लिया ?" इस प्रश्न को सुनकर धनद् को निश्चय हो गया, कि ये तो वही विक्रम महाराजा अबती नरेश हैं; मैं ने तो इनका महाराजा के योग्य कोई आदरसत्कार अपने घर नहीं किया, इस प्रकार मनमें उस को चिंतित देख कर महाराजाने कहा, "हे सेठ! आप क्यो चिंतातुर दिखाई दे रहे है ? आप अपने आने का कारण बतावें ?" तब उत्तर में धनद्ने अपने आने का कारण बताते हुए अपने पुत्र की शादी की बात सुनाई और कहा, "हे राजन् ! मैंने तो अपने घर पर आप का कोई योग्य सन्मान नहीं किया. इस के लिए मैं आप से क्षमा याचना करता हूँ.” . इस प्रकार की बातों को सुन कर सभी मंत्री-अधिकारी - आदि उस सेठ को देखने लगे और उसका परिचय जानने . के लिये उत्सुक होने लगे. यह जान कर विक्रम महाराजाने अपने पूर्व चरित्र को दोहराते हुए चैत्रपुर में जाने और धनद् P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
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