________________ 372 . विक्रम चरित्र सेठ के अतिथि बनने की बातें कह सुनाई. बाद में धनद्ने महाराजा से निवेदन किया; " मैं अपने घर में आप के पधारे विना अपने पुत्र की शादी नहीं करूंगा, अतः आप शीघ्र ही अपने परिवार के साथ पधारें.” उत्तर में विक्रमादित्यने कहा, "हे धनद् ! मेरे पूरे कुटुम्ब लावलश्कर के साथ चलने से तुमे व्यवस्था आदि में काफी धन खर्च करना होगा." धनद्ने उत्तर दिया, “हे राजन् ! आप इसकी चिंता न कीजिये. मैं आप के गौरव के अनुसार आपका अवश्य ही सत्कार करुंगा, आप सपरिवार अवश्य पधारिये." - महाराजाने धनद् को आश्वासन दे कर रवाना करते हुवे कहा, " मैं यहां का प्रबन्ध कर अपने परिवार और लश्कर' सहित आता हूँ. आप चल कर कार्य प्रारंभ कीजिये." .. इस प्रकार धनद् अपने नगर में पहुँचा. धनद् सेठने शीघ्र ही अपने घर से बहुत साधन-सामग्री लेकर, महाराजा विक्रम के आने के मार्ग में भोजन, विश्रामस्थान आदि की उसने सुन्दर व्यवस्था की, इस प्रकार की व्यवस्था देख राजा "विक्रम भी आश्चर्य चकित हो गये. सेठने अपने नगर-चैत्रपुरी में भी महाराजा के ठहरने का और भोजन सामग्री, पीने का जल आदि की बहुत उत्तम व्यवस्था कर रखी. जब महाराजा विक्रमादित्य भी अपने वचनानुसार पधारें, तब धनद् सेठने - खुब धन खर्च कर प्रदेश उत्सव करके अपूर्व सत्कार किया. P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust