________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित 369. समय बाद अवती नगरी को पधारे, और पूर्ववत् राज्य कारभार चलाने लगे. इधर चैत्रपुर में घनद् सेठका पुत्र बड़े प्यारसे लालन कराता हुआ, दिन प्रतिदिन बड़ा होने लगा; एक विद्वान पंडित के पास धनद् सेठने पुत्रको विद्या पड़ाना आरंभ किया. क्रमशः. वह धनद्कुमार शीघ्र ही विद्या ग्रहण करने लगा. इस प्रकार अल्प समय में ही वह धार्मिक और व्यवहारिक शिक्षा आदि सकल विद्याओं में कुशल हो गया. ठीक ही कहा है, प्रत्येक माता-पिता का कर्तव्य है कि अपने बालक को विद्या अवश्य ही पढ़ावे और वह विद्या भी कैसी पढ़ानी चाहिए इस के. लिये विद्वानोने कहा"जीवन में शिक्षा असी हो, जिसको पा सुख शांति रहे; मृत्यु बाद भी आसानी से, परलोक गये पर शांति रहे." प्रत्येक माता-पिताका कर्तव्य है, कि अपने घरमें जन्म प्राप्त करने वाले लड़के को दो प्रकार की शिक्षा दे, एक तो यह कि इस भव में न्याय-नीतिपूर्वक अपना कर्तव्य पालन करता हुआ जीवन व्यतीत करे, और दूसरी शिक्षा ऐसी देनी . चाहिए कि अपने जीवन में धर्म-ध्यान, जप, तप, दया, परोपकार आदि सत्कार्य कर परलोक में सद्गति को प्राप्त कर सके. ॐ अर्थात् धार्मिक और व्यवहारिक विद्या प्रत्येक * जाय मि जीवलोए, दो चेव नरेण सिक्खअव्वाइ। कम्मेण जेण. जीवइ जेण मओ सुग्गइ जाइ // स. 10/268 // P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust