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________________ विक्रम चरित्र बहुत आग्रह करने पर विधाताने उत्तर दिया, "जय यह बालक बड़ा होकर धनवान् श्रेष्ठि की कन्या से विवाह करेगा, उस समय व्याघ्र-वाघ के मुख से उसकी मृत्यु होगी." यह कह कर वह शीघ्र ही चली गई. महाराजा विक्रम भी वहां से लौट कर अपने विश्राम स्थान पर आ गये. दूसरे दिन प्रातःकाल उठकर महाराजा नित्य कार्यादि से निवृत्त हो, उसी धनद् सेठकी हवेली पर आ पहूँचे. सेठने अपने मकान पर आये हुए अतिथि का बढ़ा आदरभावसे सत्कार किया, भोजन आदि करा कर उन्हे आदरपूर्वक बैठा कर . पूछा, " आप कहां के रहेवासी हो ? और आपका क्या नाम है ?" * महाराजाने अपना परिचय देते हुए कहा, "हे सेठजी ! मैं अवंतीनगरी का रहेवासी हूँ. और विक्रम मेरा नाम है, में विदेश भ्रमण हेतु बाहर निकला हुँ. और घूमते घूमते यहाँ आया हूँ.” उस नगर से बिदा होते समय सेठने विक्रम से कहा, " मेरे इस पुत्र के विवाह-शादी पर आने की आप कृपा करे." विक्रमने कहा, "आप मुझे बुलाने आयेगे तो मैं अवश्य ही आप के पुत्र के विवाह पर आऊँगा." ईस प्रकार कह कर महाराजा वहां से रवाना होकर, अन्य देशो में अनेक प्रकार के कौतुक देखते कई देश-विदेशों का भ्रमण कर बहुत Jun Gun Aaradhak Trust P.P. Ac. Gunratnasuri M.S.
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
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