________________ पचासवाँ-प्रकरण विधाता से महाराजा का मिलाप " पहले बचन देकर, समय पर पालते है जो नहीं; वे है प्रतिज्ञा-घातकारी, निन्दनीय सभी कहीं. राड पडे राजपुत छूपे नहि; कम छूपे नहि भभुत लगाया." महाराजा विक्रमादित्य अपना राज्यकार्य बड़ी निपुणता से चला रहे है, प्रजा बड़ी सुखी हैं, न्याय उचित रीति से , किया जाता है, और दोषी को कड़ा दण्ड भी दिया जाता हैं. राजसभा नियत समय पर लगती है, जो अनेक विद्वानों-नौं रत्नों आदि से सुशोभित रहती है, वे लोग अवती नरेश के राज्य को उन्नति पर ले जाने के लिये विचार विनिमय आदि करते रहते हैं. एक दिन राजसभा में बैठे बैठे महाराजा के मनमें अचानक विचार आया, 'मैंने अपने देश के, और निकट प्रदेश में तो कई प्रकार के कौतुक देख आया हूँ; परन्तु अभी तक दूर दूर के देशो में कभी नहि गया हूँ. अब का बार दूर दूर के देशो में जा कर वहां की नीति, रीति आदि की अनुभव प्राप्त करना चाहिए, इस प्रकार विचार कर विदेश में भ्रमण करने जाने का इन्होने निश्चय किया. P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust