________________ 362 विक्रम चरित्र - महाराजा विक्रमादित्यने रोमांचकारी इतनी कथा सुनकर इस वृद्ध ब्राह्मण से प्रश्न किया, "उस पद्मा की. वह दूसरी जुति कहां है ? जो कि वह अपने पिता के घर छोड आई थी ?" उत्तर में वृद्ध ब्राह्मणने कहा, "वह तो उसके पीहरवाले स्थान में ही है, अतः वहाँ की भूमि खोदने पर वह भी मील सकती है.” महाराजाने उस स्थान को भी खुदवा कर दूसरी भी प्राप्त की जो कि ठीक उसी के समान थी, जैसी भीम चमार के वहां निकली थी. महाराजाने उस वृद्ध ब्राह्मण से पूछा, "आपने ये सब बाते कैसे जानी कि ये जुति, सिंहासन, मंडप बगेरे इन इन जगहों पर है ? " ब्राह्मणने कहा, “हे राजन् ! ये सभी बाते परंपरागत कथनानुसार मुझे ज्ञात है. इन सब बातों से यह भली भाति स्पष्ट होता है, कि महाराजा रामचन्द्रजी कितने प्रजावत्सल-प्रेमी थे, उन कि प्रजा कितनी सुखी थी, अपने आप खुद सादाई से रहते थे और विनम्र थे कि एक चमार के घर तक गये, उसके घर में अतुल धन राशि देख राम, लक्ष्मण और सीताजी प्रसन्न हुए, किन्तु धन राशि ले लेने की भावना उन्होंने नहीं की; आप ईन सब बातों को ध्यान में रख कर आप स्वयं को " अभिनव राम" और अपने राज्य को " रामराज्य" कहलाने का या समझाने का मोह-गर्व छोड़ दें, हे राजन् ! यह विचार भी कभी नहि करना चाहिये, कि मैं बड़ा राजा हु. राम के तो स्मरण मात्र से ही अग्नि शांत हो जाती है। सेकड़ो तरह के रोग नष्ट हो जाते है, जिसने बाल्यकालम P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust