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________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित में रत्नजड़ित सिंहासन पर विराजमान देखे. नमस्कार कर . आदरपूर्वक सीताजी को अपने घर में ले आई. सीताजी की साडी में तेल का छोटा सा धब्बा देख, पद्माने सीताजी से प्रश्न किया, 'हे स्वामिनि ! क्या आपके महेलों में तेल के दीपक जलते है ? जिस से आप को साडी से . तेल की गंध आती है ? - सीताजीने उत्तर दिया, 'हा, हमारे महल में तो तेल के ही दीपक जलते है, परन्तु तुम्हारे यहाँ किस वस्तु का दीपक जलते है ?' पद्माने कहा, 'हमारे यहाँ तो रत्नों के दीपक जलते है, रत्नों से सारा घर प्रकाशमान रहता है.' इस प्रकार सीत जी और पद्मा की बातें हो रही थी, कि इतने में रामचन्द्रजी अपने भाई लक्ष्मण सहित आ गये. और पद्मा को इस तरह समजाने लगे. 'हे पुत्री, स्त्री जाति के लिये पति ही शरण है, अतः तुम मान को छोड़ कर अपने पति के घर चलो. हम लोग इस लिये तुम्हारे घर आये हैं.' रामचन्द्रजी की बात सुन कर पद्मा शीघ्र ही मान गई. और उस रत्नजड़ित मोजडी-जुति को वहाँ ही छोड़ महाराजा आदि के साथ रवाना हो कर अपन पति के घर पहूँच गई. रामचन्द्रजी; लक्ष्मणजी और सीताजी पद्मा को उस के पति भीम चमार के वहाँ पहूँचा कर, अपने राजमहल में पधारे, प्रजा का पुत्रवत् पालन कर न्याय मार्ग से राज्य को चलाते हुए-सुखपूर्वक समय बीताने लगे." P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
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