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________________ विक्रम चरित्र सीता को आये देख अपना अहोभाग्य मानने लगा. उनके सत्कार के लिये रत्नजड़ित सिंहासन आदि का प्रबन्ध किया. महाराजा रामचन्द्रजी अपने एक गरीब प्रजाजन के इस प्रकार का अच्छा सत्कार और रत्नजडित सिंहासन, सूर्यकान्त, चन्द्रकान्त मणि आदि द्वारा बनाये गये अनेक घरों को देख बहुत संतोष माना कि अपनी साधारण प्रजा भी ईतनी समृद्धिशाली हैं-मैं कृतकृत्य हूँ-धन्य हूँ ! . .. पद्मा के पिताने महाराजा श्री रामचन्द्रजी से आने का कारण पूछा, 'हे राजन् ! अपने प्रिय भाई लक्ष्मण और महाराणी सीता के साथ यहाँ पधारने का क्यों कष्ट उठाया ? मेरे योग्य सेवा फरमाईये ?' उत्तर में रामचन्द्रजीने कहा, 'हे भाई, तेरी पुत्री और गांव के भीम चमार की स्त्री को मैं लेने आया हूँ, कारण कि उस की प्रतिज्ञा है कि जब मुझे लक्ष्मण, सीता सहित रामचन्द्र लेने आयेंगे तभी में ससुराल जाऊँगी, उसी कारण मुझे यहाँ आना पड़ा.' यह सुन कर चमार बहुत ही हर्षित हुआ. _उस पद्मा के पिताने घर में जाकर अपनी पुत्री से समाचार सुनाया, “हे पद्मे ! तेरी प्रतिज्ञा की टेक रखने और तुझे ससुराल पहुँचाने के लिये श्री रामचन्द्रजी, लक्ष्मण और सीता सहित यहाँ आये है ?' पद्माने चकित होकर पूछा, 'आप क्या कहते हो? क्या सच ही रामचन्द्रजी मुझे लेने आये ?' वह शीघ्र दौड़ती हुई दरवाजे की ओर आई और सचमुच ही रामचन्द्रजी आदि तिनों को कई मनुष्यों के बीच P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
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