________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित .. 359 एक दिन पति के वचनो से क्रुद्ध हो वह स्त्री एक ही जुति पहन कर अपने पीहर--पिता के घर चली गई, और एक जुति यहा छोड गई. पीहर जाने पर उसके माता-पिता आदिके पास पति के दोष कह सुनाये, माता-पिताने उसे दो-तीन दिन रखकर आश्वासन दे कर बहुत समझाया, 'हे पुत्रि ! अपने पति की आज्ञा में रह कर, ससुराल में रहनेवाली स्त्री ही कुलवती कहलाती है, और कुलवती स्त्री को पतिका ही शरण श्रेष्ठ है, ईसी लिये तुम अपने ससुराल चली जा.' पर पद्माने नहीं . माना, पद्माने पिताजी से कहा, 'मैं अपमान के कारण वहाँ नहीं जाऊँगी.' ईस तरह माता-पिता, भाई आदि के वचन भी नहीं माने. एक दिन उसके पिताने क्रुध्ध होकर कहा, 'क्यों तुझे राम-लक्ष्मण और सीता लेने आयेगें तब ही तु ससुराल जायगी ? ' उत्तर में पद्माने कहा, 'हा' उसने यह बात पकड ली. उसे अब जब भी ससुराल जाने को कहा जाता तो उत्तर में कहती, 'तुमहीने तो कहा था, कि राम-लक्ष्मण और सीताजी लेने आयेगें तब जायगी ! अतः अब तो मैं ईसी हालत मैं जाऊँगी.' यह बात धीरे धीरे सारी अयोध्या नगर में फेल गई, और अयोध्यापति श्री रामचन्द्रजी के पास पहूँची. रामचन्द्रजीने अपनी प्रजा की प्रतिज्ञा को पूर्ण करने का निश्चय कर अपने भाई लक्ष्मण और सीता के सहित उसके पीहरमें पहूँचे. पद्मा के पिताने अपने मकान पर एकाएक अयोध्यापति राम-लक्ष्मण P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust