________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित लेकर, उस अयोध्या निवासी ब्राह्मण के साथ ही अयोध्या की ओर चले. चलते चलते क्रमशः वहाँ पर पहुंचकर ब्राह्मणसे महाराजाने रामराज्य की कथा सुनाने का पुनः आग्रह किया. तब उत्तर में उस ब्राह्मणने अपने हाथ से संकेत कर एक पुरातन स्थान बताते हुए कहा, "हे राजन् !. आप प्रथम इस स्थान को खुदवाईये.” राजाने शीघ्र ही अपने साथ के नौकरों को आज्ञा दी कि वे इस स्थान को खोदे. राजा की आज्ञानुसार वह स्थान खोदा गया, सात हाथ खोदने के बाद उस जमीन के अन्दर एक जुना पुराना मकान मिला, जो रत्नों की ज्योति से चमकता था, उसे देख राजा अपने सेवक सहित आश्चर्यचकित हो गये, उस घर में एक स्थान पर अनेक मूल्यवान द्रव्यों से भरा एक घडा भी मिला थोडे दूर स्थान पर रत्नों से सुसजित एक सुंदर मंडप मिला. इसी प्रकार एक रत्न जडित सिंहासन जो रत्नों के प्रकाश से चारों ओर प्रकाशित हो रहा था. छोटी बड़ी अनेक किंमती वस्तुएँ निकलती रही उस में एक रत्नों से जडित मोजडी-जुति निकली, उसे देखकर राजा विक्रम और भी अधिक विस्मित हुए, उन्हैने आदर के साथ उस जुति के आगे अपना शिर झुकाकर उसे प्रणाम किया, आदरपूर्वक उसे हाथ में लेकर अपने मस्तक और हृदय से लगाया. . . - यह देख कर उस वृद्ध ब्राह्मणने महाराजा विक्रम से कहा, "हे राजन् ! आप इस जुति को इतना मान क्यों देते P.P.AC.Gunratnasuri M.S... Jun Gun Aaradhak Trust