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________________ उनपचासवाँ-प्रकरण नया राम बनने की आकांक्षा "बड़ा बड़ाई ना करे, वड़ा न बोले बोल; हीरा मुखसे ना कहे, लाख हमारा मोल. वह अमात्य क्या जो भूपतिका नहीं दिखाता सुन्दर राह; भूपति वह क्या मंत्रीश्वरकी जो सुनता नहि उचित सलाह." . महाराजा विक्रमादित्य अपनी राजसभा का कार्य नियमित रूपसे चलाते है, प्रजा के सुख-दुःख का पूर्ण ध्यान रखते हुए राज्य को देखभाल करने के साथ अपना समय सुखशांति पूर्वक व्यतीत करते हैं. एक दिन महाराजा को बैठे बैठे अचानक यह विचार उत्पन्न हुआ, “मैं भी अपनी प्रजा का पालन रामचंद्रजी की तरह ही करता हूँ. उनके राज्य में “किसी को कोई कष्ट नहीं था. अतः वह समय रामराज्य कहलाया, उस तरह मेरे राज्य में भी कोई दुःखी नहीं हैं. अन्याय का नाम निशान तक नहीं, तो क्या मैं भी रामका तरह प्रख्यात नहीं हो शकता? इस लिये मैं भी अब अपना नाम " अभिनवराम' रखता हूँ ताकि मुझे भी संसार का सारी जनता "राजाराम' कहे और मेरे राज्य को 'रामराज्य' के नाम से जान सके और राम के समान ही मेरा भा सन्मान करे.” इस प्रकार महाराजा विक्रमादित्यने अपने गव पूर्ण विचार, अपने मंत्रीश्वर आदि के सन्मुख प्रदशित किया P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
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