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________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय सयोजित 353. उस गरीब मनुष्य की इस प्रकार बातें सुनकर महागजा बहुत प्रसन्न हो गये, उसे अपने पास के बचे हुए तीनों अमूल्य रत्न दे कर उस की दारिद्रता का नाश कर महाराजाने आगे प्रस्थान किया. कई जंगल, पहाड़ो आदि को पार कर महाराजा अपने राज्य में पहूँच गये, अवंती में प्रवेश कर वे अब अपने महल में रहने लगे, राज्यव्यवस्था में पुरे ध्यान से लक्ष देते रहे और राज्य सभा को सुशोभित करने लगे. पाठकगण! आपने महाराजा विक्रमादित्य का संसार के परिभ्रमण से नाना प्रकार के अनुभवों को प्राप्त करने का रोचक वृत्तान्त, कपटी तापस की परीक्षा, अन्यायी राजा और पाषाण हृदय मंत्रीके अन्यायों का प्रत्यक्ष दर्शन, कामलता वेश्याकी बुद्धिमत्ता, उसके द्वारा पांचों रल प्राप्त कर अपराधी उस तापस के प्रति भी उदारता बताकर उसको अमूल्य एक रत्न दिया, वेश्याके प्रति कृतज्ञता प्रदर्शित कर उसको भी एक रत्न दे दिया. अवती जाते मार्ग में एक दरिद्र ब्राह्मण का भेटा होना उसके प्रति दयाभाव से उसको तीनों रत्न का दान करना आदि हाल इस प्रकरण में पढ़ चुके __ अब आप लोग आगामी प्रकरण में महाराजा को अभिनव-नूतन राम बनने की अभिलाषा उत्पन्न हइ और अयोध्या जाकर वहां वृद्ध ब्राह्मण के मुखसे रामराज्य की सुदर रोमांचकारी कथा सुनकर आनद प्राप्त किया. इस तरह आप भी कई बोधक कथाओं को पढ़कर अवश्य आनंद प्राप्त करेगे.. . જૈનધર્મનાં દરેક ભાષાનાં, દરેક વિષયનાં પુસ્તકો માટે અમને પુછા:જૈ ન પ્ર કા શ ન મંદિર . 308/4 शीवापानी पोण, समहापा-१ P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
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