________________ 352 विक्रम चरित्र बढ़ कर संसार में कोई भी दुःख नहीं है. जैसा कि कीसी कविने कहा है:"लक्ष्मी रहित मनुष्य जगत में, सुन्दर भी न सुहाता है, लक्ष्मीवान कुरुप क्यों न हो! तब भी पूजा जाता हैं." निर्धन आदमी चाहे कितना ही सद्गुणी सुन्दर या विद्वान क्यों न हो, उस बेचारे को कोई नहीं पूछता; परन्तु धनवान मनुष्य कितना ही कुरूप या निर्गुणी और मूर्ख क्यों न हो, तो भी सब जगह उसकी लोगों से सन्मान-पूजा होती ही रहती हैं. 4 / अतः "हे माता लक्ष्मी ! तुम्हारी कृपा जिस मनुष्य पर हो जाती है, उसके तो अवगुण भी गुण बन जाते है, जैसे कि धनी-मानी जनों के आलस्य को स्थिरता कही जाती हैं, चंचलता को उद्योगिता, मूकता याने गुंगेपन को मित भाषिता,.भोलेपन को सरलता और पात्रापात्र का विचार न करना अर्थात् सबको समान समझने का जो अविवेक उसको उसकी उदारता कहते है."ॐ x लक्ष्मी विना सुरूपोऽपि मान्यते न नरः क्वचित् / कुरूपोऽपि श्रियायुक्तः पूज्यते निखिलैर्जनैः / / स. 10/187 // * आलस्य स्थिरतामुपैति भजते चापल्यमुद्योगिताम् / "मूकत्वं मितभाषितां वितनुते मौग्ध्यं भवेदार्जवम् / / पात्रापात्र विचारभावविरहो यच्छ्त्युदारत्मताम् / मार्त लक्ष्मि ! तव प्रसादवशतो दोषा अपि स्युर्गुणाः / स. 10/188 // P.P.AC. Gunratnasuri M.S. . Jun Gun Aaradhak Trust