________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित 347 रास्ते पर एक नंगा साधु आ गया. उसे देख मैं लज्जित हो गई. अतः मुझे विवश होकर वह रास्ता छोडना पड़ा और दूसरे रास्ते से गई जो कि गोविन्द सेठ के मकान के पाससे जाता है.” इस प्रकार वेश्या की बातें सुन राजाने उसे भी निषि समझ उसे छोड दिया और उस दिगम्बर को बुलाने का आदेश दिया. दिगम्बर साधु के आने पर राजाने उस से प्रश्न किया, "तुम क्यों नंगे होकर घूमते हो? तुम्हे नंगा देख यह वेश्या अपना रास्ता छोड गोविन्द सेठ के घर के पास होकर गई और इस से उस कारीगर का मन विचलित हो गया. इस कारण से उसने दीवार को ठीक नहीं बनाया और दीवार के कमजोर रहने से इस वृद्धाका पुत्र मारा गया. अतः तुम्हें इस अपराध में शली की सजा दी जाती है.” तुरंत ही जल्लाद लोग उस दिगम्बर को शूली पर ले गये. शूली की फांस बहुत बड़ी थी और दिगम्बर दुबला-पतला था, जब वह मास में डाला जाता तो वह नीचे गिर जाता. इस प्रकार बार बार गिरने पर जल्लाद निराश हो मंत्री से सारा हाल कह सुनाया और मंत्री राजा के पास जा कर सारा वृत्तान्त कहने लगा, “दुबलापतला है अतः राजन् ! दिगम्बर साधु शूली की मास में नहीं फँसता हैं, उसे तो फांसी लगती ही नहीं हैं.” राजाने उत्तर दिया, “किसी मोटे ताजे आदमी को पकड़कर लेजाओ जो कि उस मासी के फंदे के योग्य हो." इस प्रकार राजा की आज्ञा मंत्री द्वारा सुनकर जल्लादने उस दिगम्बर को तो P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust