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________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित 345 - राज्य में मत्स्यगलागल न्याय (बडा छोटे को खाय) की तरह ही चलता रहा तो संसार शीघ्र नष्ट हो जायगा, राजाओं की शोभा उनके न्याय करने में है, नहीं कि केवल मुकुटकुंडल पहनने में. मुकुट-कुंडल आदि तो नट भी पहैनते है." - इस प्रकार वृद्धा के द्वारा सत्य और कटु बातें सुनाने पर भी राजाने उस वृद्धा से कहा, "तुम्हारे मतलब की बात सुनाओ. इतनी बाते कहने की क्या आवश्यकता ?" वृद्धा कहने लगी, “हे राजन् ! मेरा पुत्र रात्रि को गोविन्द सेठ के मकान पर चोरी करने गया था. जब वह उसके मकान की दीवार को तोडकर मकान में घुसना चाहा उसी समय दीवार के गिर जाने से वह उसके नीचे दब कर / मर गया. हे राजन् ! अब मेरी वृद्धावस्था है, और वह मेरा एक मात्र सहारा था. मैं उसके आधार पर ही जीवित थी. अब मेरा सहारा कौन है ? आप कृपा कर मेरी प्रार्थना पर विचार कीजिये और मेरा न्याय कीजिये.” . ' वृद्धा की बाते सुन राजाने गोविन्द सेठ को . बुलवाया और उस से कहा, "हे सेठ! तुमने ऐसी कमजोर दीवार क्यों बनाई ? जिससे कि इस वृद्धाका इकलौता पुत्र मारा गया ? अतः इस अपराध में तुम्हें शूली की सजा दी जाती है." राज्यकर्मचारी उसे पकड़कर शूली पर ले जाने लगे, परन्तु उसी * समय गोविन्द सेठने पुनः प्रार्थना करते हुए कहा, "हे राजन्! मेरी थोडी सी विनती सुन लीजिए, इस दीवार के गिरने P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
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