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________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित 343 - प्रजा को चाहिए कि वह ऐसे राजा को छोड़ कहीं अन्य , स्थान पर चली जाय. जैसे"राक्षसरूप महीप, मंत्रीगण व्याघ्र सदृश हो क्रुर; जैसा राज्य छोड़कर जनताको भाग जाना चाहिये दूर." ... महाराजा विक्रमादित्य इस प्रकार अपने मनमें तरह तरह के विचार कर ही रहे थे कि ईतने में एक किसान आकर पाषाणहृदय मंत्री को अपनी प्रार्थना सुनाने लगा. वह कहने लगा, "हे मंत्रीराज ! मेरे खेत को एक राहगीर ने अपने बैल छोड़कर रास्ते पर के खेत को खिला दिया है; कृपया आप मुझे नुकशान का बदला दिलाने की व्यवस्था करें." इस प्रकार वह अपनी बात सुना ही रहा था, कि वह राहगीर भी उसके पीछे पीछे वहाँ आ गया, और वह भी मंत्रीसे अपनी प्रार्थना सुनाने लगा, " हे मंत्रीश्वर, मैं अपने रास्ते रास्ते जा रहा था. मेरी गाडी, सामान से परिपूर्ण थी. अचानक ही उस गाडी का पहिया टूट गया. अतः मैंने अपने बैलों को खोल कर अपनी गाडी के साथ बांध कर अपनी गाडी सुधारने लगा. मेरे बैल बंधे होते हुए भी कैसे इसके खेत को खा गये ? हे मंत्रीराज ! यह मेरी झुठी ही फरियाद करता है. इसने बिना कारण क्रोधित होकर मेरी गाडी को उसे पापड की तरह तोड़ दिया. अब मैं आप की शरण में हूँ. मेरा यहाँ परदेश में कोई नहीं है. अतः मेरा उचित न्याय कीजिए." - दोनों की बाते सुन मंत्रीश्वर ने अपना निर्णय दिया, P.P.AC..Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
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