________________ 342 विक्रम चरित्र दिलाना अनिवार्य समज विक्रम इस नगर के पाषाणहृदयी मंत्री के पास अपनी बात सुनाने पहूँचा. .. विक्रम राजा जब मंत्रीश्वर के पास पहूँचा तब उसे यह मालूम हुआ कि वे एक वणिक्ले वार्तालाप कर रहे हैं, अतः राजा विक्रम उन दोनों की वार्ताकाप को ध्यानपूर्वक सुनने लगा. ___मंत्रीने 'हर' नाम के एक वणिक को एक लाख रुपये सूद-व्याज पर एक वर्ष के लिये दिये थे, परन्तु दूसरे ही दिन उसे पकड़ मंगवा कर एक वर्ष के व्याज मांगने लगा, और उस वणिक को कारागार की सजा फरमाई, हताश हो उस विचारे वणिक्ने आखिर में इस अन्यायी मंत्री को पूरे वर्ष का व्याज जब देने का कवुल किया; तब उस वणिक को कारागार से छोड़ा. उन दोनों को बातों से राजा विक्रम को यह मालूम हो गया, 'यह मंत्री मेरा क्या न्याय करेगा ? जब कि येह स्वयं ही अन्यायी हैं.' इस प्रसंग को देख महाराजा को अति दुःख हुआ और इस अन्याय के लिये बार बार अपने मनमें विचार करने लगा. इस तरह मंत्री द्वारा उस हर वणिक को ठग कर धन लेते देख विक्रमादित्यने सोचा, 'इसी प्रकार के मंत्री तथा अपनी जाके दुःख सुख पर ध्यान न देने वाले राजा के होने पर प्रजा दुःखी होती है, और वहाँ शांति नहीं होती, किसीने ठीक ही कहा है कि ऐसी हालत होने वाले राज्य का P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust