________________ _ विक्रम चरित्र आदि को देख विक्रमादित्य उस पर बहुत ही प्रसन्न हुआ. . और उस तापस को निर्लोभी समझ उस के पीछे पीछे उनकी परीक्षा करने के उद्देश्य से राजा उनके आश्रम पर गया. . तापस के आश्रम पर जाकर महाराजा विक्रमादित्य उन / दोनों तापसों को नमस्कार किया. और अपने पास के पांचों अमूल्य रत्न निकाल कर उन तापसों के आगे दिखा कर विनती करने लगा. "हे महात्मन् ! मैं देश भ्रमण करने के लिये निकला हूँ आपका नाम और जगत प्रसिद्ध कीर्ति सुनकर आपको वंदना करने आया हूँ, ये मेरे पास पांच अमूल्य रत्न है, पांच रत्न साथमें रखकर भ्रमण करने में मैं असमर्थ हूँ, अतः आप इन को अपने पास रखिये, कारण कि विद्वानोंने कहा हैं, 'जहाँ पर मनुष्यों की सुंदर आकृति-रूप है, वहाँ पर गुणों का समूह अवश्य ही आ जाता है.. और जहाँ पर संपत्ति है, वहाँ पर भय भी निश्चित रहता हे.' x इस लिये परदेश में भ्रमण करनेवालो को संपत्ति रखने से भय रहता है, अतः मः . यह पांचों रत्न आप के पास रख कर जाना चाहता हूँ, कृपा .. कर आप इन्हें अपने पास रख कर मुझे पर्यटन में भयमुक्त बनाने की कृपा करें. मैं वापस आ कर. आपसे यह रत्न . ले लूँगा.” उत्तर में तापसने मौन होकर अपने हाथों के इसारा / से कहा, "धन को देखने की बात क्या; हम तो छूते तक 4 यत्राकृतिगुणास्तत्र जायन्ते मानवे खलु / यत्र स्याद्विविभस्तत्र भीतिर्भवति निश्चितम् // स. 10/95 // . . P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust