________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय. संयोजित 333 पाठक गण! आपने इस प्रकरण से भली प्रकार जानकारी प्राप्त कर ही ली होगी, कि पंडित वेदगर्भने अपनी चतुराई से किस प्रकार अपने शाप की पूर्ति की, तथा प्रियंगुमंजरीने किये गये गुरु अपमान के अपराध में मूर्ख पति पाकर कितना कष्ट भोगा, पर महाकाली के आराधन से वही ग्वाल मूर्ख होते हुए भी एक महान् पंडित हो गया. अतः प्रत्येक मानव को अपना व्यवहार आदर्श रूपमें बनाना चाहिए ताकि प्रियंगुमंजरी की भाति हमें भी कहीं कष्ट न भोगना पडे. गुरु की महिमा तो अपार है अतः उनके आगे तो सदा विनीत भाव से ही रहना चाहिए, . साथ ही प्रत्येक को विद्वान भी बनने का अवश्य ही प्रयत्न करना चाहिये. कारण कि विद्या से ही विनय और सद्ज्ञान प्राप्त होता हैं. * अब आप आगामी प्रकरण में महाराजा द्वारा पंचरत्न को लेकर विचित्रनगर में पहूँचना और विचित्र न्याय देने का . रोचक हाल पढ़ेंगे. जिस घर जिन मन्दिर नही.. . जिस घर नही मुनिदान जिस घर धर्मकथा नही, वो नही पूण्य का स्थान. . P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust