________________ .. विक्रम चरित्र कालीदासने प्रतिज्ञा कर अपनी प्रिया को अपनी विद्वत्ता द्वारा प्रसन्न किया. . महाकाव्योंकी रचना कालीदासने अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार बाद में समयानुसार " अस्ति” शब्द पर “कुमारसंभव” " कश्चिद् " शब्द पर "मेघदूत” और “वाग्" शब्द पर रघुवंश जैसे महान् काव्यों की रचना की, जो आज भी विश्वमें अद्वितीय काव्यों की श्रेणी में गिने जाते है. इस प्रकार कालीदास की चमत्कारपूर्ण काव्य कला से अवंती की जनता तथा उसकी प्रिया और महाराजा आदि प्रसन्न हो उसे महाकवि कालीदास कहने लगे. सच है मनुष्य की प्रशंसा उस विद्या, के आधार पर ही होती है. अन्यथा उसे जगतमें कोई नहीं पूछता हैं. परंम कृपालू मा सरस्वती के भंडार की तो अपूर्व महिमा है. अन्य प्रकार की वस्तुएँ तो उपयोग और खर्च करने से घटती हैं, परन्तु यहा. तो संसार के इस नियम के विरुद्ध ही कार्य होता है. विद्या का जितना ही उपयोग किया जाता ... है उतनी ही विद्या बढ़ती है. जैसे किसी कविने भी ठीक __ ही कहा है. - "हे सरस्वति आपके भंडारकी बड़ी अचंभी बात; ... ज्यों खरचे त्यों त्यों बढे, बीन खर्चे घट जात."* * अव्यये व्ययमायाति, व्यये याति सुविस्तरम् / . अपूर्व : कोऽपि भंडारस्तव भारति दृश्यते / P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust