________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित 325 जानते हैं कि महाराजाके जमाई वडे ही विद्वान हैं, पर मैंने तो इस की मूर्खता की परीक्षा आज इसके 'डीउ-डीठ' शब्द के उच्चारण से कर ली. वास्तव में ही यह कोई गोपाल है." इस प्रकार सोच-विचार करते करते राजकुमारी प्रियंगुम जरीने अपने मनमें निश्चय कर लिया, " अब मैं अपने इस मूर्ख पति का मुँह नहीं देगी, और न इससे कभी भी बोलुंगी." . इधर वह गोपाल भी अपने मनमें विचारने लगा, “संसार जानता है कि महाराजा का जामाता बड़ा हा विद्वान है, पर मैं कुछ भी नहीं जानता हूँ. मुझे इसके लिये धिकार है. संसार कहता है कि वह स्वरस्वती का पुत्र है, पर मैं तो एक अक्षर भी नहीं जानता हूँ. इस प्रकार वह अपनी मूर्खता पर विचार करता करता महल से दूर निकल गया, और नगर के उद्यानमें महाकाली का मन्दिर था, वहाँ आ पहूँचा. देवी की सुन्दर मूर्ति के दर्शन-नमस्कार कर गोपालने मन ही मन निश्चय किया, " देवी को प्रसन्न कर विद्या प्राप्त किये बीना यहासे नहीं हटूंगा” इस प्रकार मन दृढ कर देवी के सामने अड्डा जमाकर ध्यानमें बैठ गया. गोपाल द्वारा महाकालीकी आराधना वह गोपाल महाकाली के मन्दिर में देवी सन्मुख बड़े विनय और भावभक्ति से स्तुति करता हुआ कहने लगा, "हे भगवति ! मैं अब तेरी ही शरणमें हूँ, तू मुझे विद्या P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust