________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित 321 महाराज विक्रमादित्य उस अपूर्व शब्द 'उपरट' को सुन बहुत आश्चर्यचकित हुआ. महाराजाके भाव को वह चतुर पंडित वेदगर्भ ताड़ गया, और तुरंत ही उनको संबोधितः कर कहने लगा, "हे राजन् ! इस नवीन पंडितने आपको अपूर्व आशीवर्वाद दिया है. आप इस अपूर्व आशीर्वाद का अर्थ सुनिये. इस आशीर्वाद में जो प्रथम उ शब्द है, जिसका अर्थ उमा-पार्वती होता है, और 'श' अक्षर से शंकरका बोध होता है. 'र' अक्षर से रक्षतु और 'ट' अक्षर से टंकार अर्थ निकलता है / संपूर्ण शब्द का यह अर्थ होता है कि हे राजन् ! उमा-पति त्रिशलको धारण करनेवाले शंकर तुम्हारी रक्षा करें, और तुम्हारी कीर्ति टंकार चारों और फैले. यह आशीर्वाद इस ब्राह्मणने दिया है."x __. वेदगर्भ के द्वारा इस प्रकार उस अपूर्व आशीर्वाद के गूढार्थ को सुन कर महाराजा बड़े ही चकित हुए और कहने लगे, “यह कोई सरस्वती पुत्र तो नहीं है ?" प्रियंगुमंजरीका विवाहः__राजा के इस प्रकार का वचन सुन वेदगर्भ ने उत्तर दिया, “हे राजन् ! मैं सरस्वती की आराधना कर आपकी x उमया सहितो रुद्गः शंकर शूलपाणियुक् / रक्षतु तव राजेन्द्र, टणत्कार करें यशः / / स. 10/38 / / P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust