________________ 320 विक्रम चरित्र शीघ्र ही अपने दोनों हाथो को इकट्ठा कर मेरी तरह करपात्र बनाईये, और मैं आपको अपनी गायों के स्तनसे दृध निकाल कर पिलाता हूँ." ब्राह्मणने तुरंत ही गोपाल के बताये अनुसार करपात्र बनाकर गायके पास बैठ गया. और गोपालने बडे आदर और प्रेमके साथ पंडित को दूध पिलाया. वेदगर्भने पेट भर दूध पिया और वह तृप्त हो गया. दूध पीकर वह खड़ा हो गया और गोपालकी चतुराई पर विचार करने लगा. उसने निश्चय किया, "वह गोपाल ही प्रियंगुमंजरी के * योग्य वर है. मेरा भी मनोरथ इससे पूर्ण हो जायगा. अतः इसके साथ ही राजकुमारीका विवाह कराना चाहिये.” इस प्रकार वह विचार कर ग्यालेको समझाबुझा कर अपने घर ले आया. और उसे छ मास तक अपने पास रखकर उसे स्नान करने, सुन्दर कपड़े पहनने, सुन्दर शुद्ध और मिष्ट भाषामें वार्तालाप करने, ब्राह्मण के अनुसार "स्वस्ति" शब्दसे आशीर्वाद देने, राज्य सभामें बैठने उठने का भली प्रकारसे ज्ञान कराया. . , एक दिन समय पाकर पंडित वेदगर्भ उसी गोपाल को अपने साथ महाराजा विक्रमादित्य की राज्यसभा में ले गया. वेदगर्भने राजसिंहासन पर बिराजे हुए महाराज को स्वस्ति शब्द कह कर आशीर्वाद दिया. परन्तु पास ही खड़ा वह गोपाल तो स्वस्ति शब्द को भूल गया और बदलेमें 'उषरट' शब्द बोला, P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust