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________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित 319 बढ़ने पर उसे गायों को चराता हुआ एक बाला-गोपाल दिखाई दिया, उसे देखते ही वेदगर्भ पंडित शीघ्र उसके पास पहुँचा, और उससे प्रश्न किया, “हे गोपाल ! मुझे बड़ी जोर से प्यास लगी है, मुझे कोई कुआ, तालाब या नदी दिखाय कि जिससे में . वहाँ जाकर जल पीकर अपनी प्यास शान्त करूं." गोपालने उत्तर दिया, " यहाँ निकट में कोई जलस्थान तो नहीं है.” उसे अधिक प्यास से व्याकुल देख ग्बालेने पुनः कहा, “हे ब्राह्मण ! अगर तुझे खूब प्यास लगी है, तो करचंडी बना, मैं अभी अपनी गायो के दूध से ही तेरी प्यास बुझा दूंगा." गोपालका उन्तर सुनकर पंडित बड़ा ही प्रसन्न हुआ पर उसे 'करचंडी' शब्द का अर्थ समझ में नहीं आया. बहुत विचारने पर भी वह 'करचंडी' शब्द का अर्थ नहीं समझने पाया इससे वह और भी अधिक उदास हो गया. और अपने आपको धिक्कारता हुआ मनमें कहने लगा, 'मैं एक मुख गोपाल के 'करचंडी' शब्दका भी अर्थ नहीं जान पाया, मुझे व्याकरण आदि शास्त्र पढने से क्या लाभ ?' इस तरह वह किंकर्तव्य-विमूढ हो गया.. पंडित को अधिक समय तक चुप और उदास देख गोपालने पुनः पंडित से कहा, "हे ब्राह्मण ! क्या तुम्हें दूध पीकर अपनी प्यास नहीं बुज़ानी है ? तुम चुप क्यों हैं ? P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
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