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________________ 318 विक्रम चरित्र महाराजा ने वेदगर्भ को उत्तर दिया, " विप्रदेव ! आप बिलकुल ठीक कहते हैं. मुझे अपनी प्रिय पुत्री प्रियंगुमंजरी के लिए योग्य वरकी चिंता लगी हुई है." __ वेदगर्भने उत्तर दिया, “राजन् ! आप इसकी चिंता न करें, मैं शीघ्र ही प्रियंगुमंजरी के योग्य किसी विद्वान नर को खोज लाऊँगा.” इस प्रकार कहकर वह अपने मनमें इस उचित अवसर के लिये बड़ा ही प्रसन्न होने लगा. अब उसे निश्चय हो गया कि अब मेरा दिया शाप शीघ्र मेरे द्वारा ही पूर्ण रूपसे सफल होगा." पुनः बोला, “हे राजन् ! राजा लोगों के कार्य तो उनके सेवक ही करते हैं. तथा राजा लोग स्वयं भी अपने सेवकों से ही करवाते हैं. और अन्य सभी लोग अपना कार्य अपने ही हाथों से करते हैं. अर्थात् आपने मेरे योग्य कार्य सौंपा हैं. वह कार्य अच्छी तरह करूंगा." वेदगर्भ की पूर्व ग्वाले से भेंट: एक दिन वेदगर्भ ब्राह्मण महाराजा विक्रमादित्य की आज्ञानुसार प्रियंगुमंजरी के वर की खोज के लिए निकला.. अनेक नगर, वन, पहाड़ आदि में ढूँढने लगा. पर उन्हें कहीं भी अपनी इच्छानुसार वर नहीं मिला. एक दिन वह पंडित एक जंगल के रास्ते जा रहा था, चलते चलते उसे प्यास लगी. पानी की खोज में वह चारों ओर देखने लगा, पर उसे कहीं भी पानी दृष्टिगोचर नहीं हुआ. थोडा आगे P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
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