________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित 317 योग्य वरकी खोजः____ एक दिन नीति एवं धर्म के ज्ञाता महाराजा विक्रमादित्यने अपनी पुत्री को पूर्ण यौवनावस्था में देख उसके पाणिग्रहण कराने की चिंता उत्पन्न हुई, इस लिये महाराजाने अपने दूतों को इधर-उधर किसी योग्य विद्वान एवं शक्तिशाली राजकुमार की खोजमें भेज दिया. किसी ने ठीक ही किया कहा है “मात, पिता, विद्या विभव, वयस रूपकुल प्रीत; इन गुणवालों के यहाँ कन्या दीजे मीत." . प्रत्येक माता-पिता का कर्तव्य है कि वह अपनी कन्या के लिये कुलवान, शीलवान, कुटुम्बवान, विद्वान, धनवान, . समान अवस्था एवं आरोग्यवान इन सात बातों को अवश्य ही वरमें देखें. मूर्ख, निर्धन, परदेशी,, शूरवीर, वैरागी-मुमुक्षु और कन्यासे तीन गुणा अधिक उम्रवाले व्यक्ति को कन्या नहीं देनी चाहिए. उपरोक्त बातों को सब देख कर ही कन्या देनी चाहिए, आगे तो फिर कन्या अपने भाग्य के अनुसार सुख या दुःख को प्राप्त करती है. राजा अपनी पुत्री के लिये योग्य वर की चिंता में , रहने लगे. एक दिन राजसभा में राजा को चिंताग्रसित देख वेदगर्भ ब्राह्मणने महाराजा से प्रश्न किया, “हे राजन्! मैं आपको कई दिनों से चिंताग्रसित देख रहा हूँ, आप कृपया मुझे अपनी चिंता का कारण कहें." . P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust