________________ 314 विक्रम चरित्र प्रियंगुमंजरी ने अपने गुरुसे शिक्षा प्राप्त करना प्रारंभ किया. "अपनी प्रबल बुद्धिसे प्रियंगुमंजरी नित्य ही अपना पाठ समय पर याद कर गुरु को सुना देती. कुछ ही कालमें इस बुद्धिमती कन्याने अपने गुरु से सभी शास्त्रों का अध्ययन पूर्ण कर लिया, और स्वयं न्याय व्याकरण आदि के साथ साथ स्त्रीसमाज की चौंसठ कलाओं में भी निपुण हो गई. शनैः-शनैः प्रियंगुमंजरी बड़ी होने लगी, और क्रमशः यौवनावस्था को प्राप्त हुई अब वह अपने महल में ही रहती और अपनी सखी-सहेलियों के साथ राजमहल, उद्यान और सुन्दर क्रीडाविहारादि स्थानों में समय व्यतीत कर रही हैं. उसे अब भले बुरे का भी ज्ञान होने लगा था. बड़ो का आदर छोटे के प्रति रनेह, नौकर-चाकरो के प्रति वात्सल्यभाव तथा अन्य व्यवहारों को भी वह समझने लगी थी. वेदगर्भ द्वारा शाप प्राप्तिः वसंत ऋतु थी, ठंडी ठंडी सुगंधित हवा चल रही थी; प्रत्येक व्यक्ति इस सुन्दर समय में अपने मन को प्रसन्न करने हेतु सुबह-शाम घूमने जाते थे. इस ऋतु में प्रत्येक प्रकारकी वनस्पति फल-फूल आदिसे सुशोभित हो जाती है, यह ऋतु एक सुखदायक ऋतु होती हैं. कोयल की कूक, फूलोंकी महक और शीतल वायु चल रहा हो उस समय किसका मन मोहित नहीं होता ? फलों का राजा आम इसी P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust